तबलीगी जमात। भारत में यह नाम पिछले तीन से चार दिनों में आशचर्यजन तरीके से कोने कोने में फैल चुका है। यह नाम अचानक तब सुर्खियों में आ गया जब 31मार्च को तेलंगाना में एक साथ छह लोगों को कोरोना संक्रमण से मौत हो गई। जब खोजबीन की गई तो सभी छह लोग दिल्ली की मुस्लिम संस्था तबलीगी जमात के सदस्य निकले, जो कुछ दिन पहले ही वहां के एक कार्यक्रम से हिस्सा लेकर लौटे थे। इसके बाद एक एक कर सनसनीखेज खुलासे होते चले गए।
आईए, पहले जानिए किस तरह से तबलीगी जमात की हैरान करने वाली खबरे सामने आई। 31मार्च की घटना के बाद निजामुद्दीन स्थित इसके मुख्यालय पर पुलिस ने कार्रवाई शुरू की। पता चला वहां 2600 से ज्यादा लोग एक साथ छिपे थे। इनमें 900 से ज्यादा विदेशी मुसलमान भी थे. आरोप प्रत्यारोप शुरू हुए। परत दर परत जानकारी सामने आई। जब दिल्ली सरकार लगातार लोगों को सामूहिक कार्यक्रम करने से मना कर रही थी, एक जगह रुकने से मना कर रही थी, उसी दौरान भी तबलीगी जमात में कार्यक्रम किए जा रहे थे। थाइलैंड, चीन, सिंगापुर, बांगलादेश, अफगानिस्तान से आए सैकड़ों मुसलामान धर्म प्रचारक यहां आकर रुके हुए थे। यहां का प्रमुख मौलाना साद लोगों भड़काता रहा। वो सरकार के निर्देश और सामाजिक दूरी को इस्लाम के खिलाफ साजिश बता कर लोगों को मस्जिद आने, एक साथ नमाज पढ़ने के उकसाता रहा। एक ऑडियो से पता चला कि मौलाना साद जब तकरीर कर रहा था, तब भी वहां मौजूद लोग खांस रहे थे।
बताया जा रहा है कि स्थिति जब खराब होने लगी, लोग बीमार पड़ने लगे तब 23मार्च को मौलान साद ने पुलिस को पत्र लिख कर लोगों को वापस भेजने के लिए गाड़ी की परमिशन देने की मांग की। इस केस में पुलिस पर भी कुछ सवाल उठे। बाद में WHO के हस्तक्षेप से वहां मेडिकल टीम पहुंची और फिर पुलिस की कार्रवाई के बाद भवन को खाली कराया गया।
इस वजह से तबलीगी जमात के खिलाफ भड़का देश का गुस्सा
- कोरोना को लेकर जब देश में आपात स्थिति शुरू हो चुकी थी। सरकार बार बार सामाजिक दूरी बनाने और कोई समारोह नहीं करने का निर्देश दे रही थी, तब भी यहां समारोह किए गए। यह सीधे सीधे लोगों को खतरे में डालने वाला काम था
- जब पुलिस ने तबलीगी जमात के सदस्यों को यहां से निकालाना शुरू किया तो उनका व्यवहार बेहद खराब नजर आया। बस में बैठते वक्त तबलीगी जमातियों ने मेडिकल टीम के सदस्यों पर ही थूकना शुरू कर दिया। बस की खिड़की से बाहर सड़कों पर थूकना शुरू कर दिया।
- इनकी हरकतें यहीं नहीं रुकी। जब इन्हें क्वारंटीन और आइसोलेशन केंद्र में रखा गया, वहां पर भी इनकी नीचतापूर्ण हरकत जारी रही। रेलवे के आइसोलेशन केंद्र में जमातियों ने उत्पात मचाना शुरू कर दिया। खाने पीने की अनुचित मांग करते हुए मेडिकल स्टाफ, डॉक्टरों पर थूकना शुरू कर दिया। पूरे केंद्र में इधर उधर घूमना शुरू कर दिया। एक ने तो खिड़की से कूद कर आत्महत्या करने तक कोशिश कर ली।
- जबरदस्त लापरवाही की खबर सामने आऩे के बाद भीजमात के लोगों ने खुद से सहयोग करने की पहल नहीं की। ये देशभर की मस्जिदों में छिपे रहे। अपील के बावजूद सामने आकर जांच कराने या फिर आइसोलेशन केंद्र में जाने को तैयार नहीं हुए। पुलिस और प्रशासन को मुहिम चला कर इन्हें ढूंढना पड़ा। देश के अलग अलग हिस्सों से इन्हें मस्जिदों से बाहर लाया गया
- गाजियाबाद के अस्पताल से भी इनकी घिनौनी हरकत सामने आई। इलाज के भर्ती किए जमातियों ने नर्सों के साथ अश्लील व्यवहार शुरू कर दिया। वो नर्सों को भद्दे भद्दे इशारे करने लगे। यहां तक कि पाजामा खोल कर नंगे अस्पताल में घुमने लग गए। अश्लील गाने गाने लगे। अस्पताल प्रबंधन की शिकायत पर एफआईआर दर्ज कराया गया। फिर कई जमाती गिरफ्तार किए गए।
- देश में सीधा सीधा मैसेज गया कि तबलीगी जमात के लोगों ने जान बूझ कर देश के लोगों को खतरे में डाला। सरकार के नियमों का उल्लंघन किया। कोरोना संक्रमित होकर दूसरे हिस्सों में इसे फैलाते रहे।
- 31 मार्च से 4 अप्रैल तक देश में कोरोने के मामले बहुत तेजी से बढ़े। महज तीन- चार दिन मे ही कोरोना संक्रमण की संख्या एक हजार से बढ़ कर ढाई हजार तक चले गए। नए मामलों में करीब 60 प्रतिशत मामले तबलीगी जमातियों से जुड़े थे।
आईए जानते हैं, क्या है तबलीगी जमात और क्या काम करता है यह संगठन
- तब्लीगी, जमात और मरकज ये तीन अलग-अलग शब्द हैं। तब्लीगी का मतलब होता है, अल्लाह के संदेशों का प्रचार करने वाला। जमात मतलब है समूह और मरकज का अर्थ होता है बैठक आयोजित करने की जगह। यानी की अल्लाह की कही बातों का प्रचार करने वाला समूह।
- तब्लीगी जमात से जुड़े लोग जो पारंपरिक इस्लाम को मानते हैं और इसी का प्रचार-प्रसार करते हैं। इ सका मुख्यालय दिल्ली के निजामुद्दीन इलाके में स्थित है। एक दावे के मुताबिक इस जमात के दुनियाभर में 15 करोड़ सदस्य हैं। 20वीं सदी में तबलीगी जमात को इस्लाम का एक बड़ा और अहम आंदोलन माना गया था।
पहली मरकज और इज्तिमा
- हरियाणा के नूंह से वर्ष 1927 में शुरू हुई तब्लीगी जमात की पहली मरकज 14 साल बाद हुई थी। साल 1941 में 25 हजार लोगों के साथ पहली बैठक हुई थी।
- इसके बाद ही यह यहां से पूरी दुनिया में फैल गया। विश्व के अलग-अलग देशों में हर साल इसका सालाना जलसा होता है, जिसे इज्तिमा कहते हैं। मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में साल 1949 में सबसे पहले इज्तिमा आयोजित किया गया था।
कहां से, कैसे हुई शुरू
- कहा जाता है ‘तब्लीगी जमात’ की शुरुआत इस्लाम का प्रचार-प्रसार और मुस्लिम को धर्म संबंधी जानकारियां देने के लिए की गई थी।
- इसके पीछे कारण यह था कि मुगल काल में कई लोगों ने इस्लाम धर्म कबूल किया था, लेकिन फिर वो सभी हिंदू परंपरा और रीति-रिवाज में लौट रहे थे। ब्रिटिश काल में भारत में आर्य समाज ने उन्हें दोबारा से हिंदू बनाने के लिए शुद्धिकरण अभियान शुरू किया था, जिसके चलते मौलाना इलियास कांधलवी ने इस्लाम की शिक्षा देने का काम प्रारंभ किया।
- तबलीगी जमात आंदोलन 1927 में मुहम्मद इलियास अल-कांधलवी ने भारत में हरियाणा के नूंह जिले के गांव से शुरू किया था।
- जमात के छह मुख्य उद्देश्य या “छ: उसूल” हैं (कलिमा, सलात, इल्म, इक्राम-ए-मुस्लिम, इख्लास-ए-निय्यत, दावत-ओ-तब्लीग) हैं। आज यह 213 देशों तक फैल चुका है।
कैसे करता है यह काम
- तब्लीगी जमात के मरकज से ही अलग-अलग हिस्सों के लिए तमाम जमातें या समूह या फिर आप इसे जत्था भी कह सकते हैं, निकलती हैं।
- यह जमात तीन दिन, पांच दिन, दस दिन, 40 दिन और चार महीने तक की यात्रा पर जाती हैं।
- एक जमात में आठ से दस लोग शामिल होते हैं। इनमें दो लोग सेवा के लिए होते हैं जो कि खाना बनाते हैं।
- जमात में शामिल लोग सुबह-शाम शहर में निकलते हैं और लोगों से नजदीकी मस्जिद में पहुंचने के लिए कहते हैं।
- सुबह के वक्त ये हदीस पढ़ते हैं और नमाज पढ़ने और रोजा रखने पर इनका ज्यादा जोर होता है। इस तरह से ये अलग-अलग इलाकों में इस्लाम का प्रचार करते हैं और अपने धर्म के बारे में लोगों को बताते हैं।
आतंकवादी संगठनों के साथ भी जुड़ा रहा है नाम
इस्लामी मिशनरियों के वैश्विक संगठन तब्लीगी जमात का पाकिस्तान स्थित प्रतिबंधित आतंकी संगठन हरकत उल मुजाहिदीन (एचयूएम) से जुड़ाव का लंबा इतिहास रहा है। भारतीय जांचकर्ताओं और पाकिस्तानी विश्लेषकों के मुताबिक हरकत उल मुजाहिदीन के मूल संस्थापक तब्लीगी जमात के सदस्य थे।
हरकत उल जिहाद अल इस्लामी (हूजी) से टूटकर 1985 में बने हरकत उल मुजाहिदीन ने अफगानिस्तान से तत्कालीन सोवियत संघ गठबंधन की सत्ता को उखाड़ फेंकने के लिए पाकिस्तान समर्थक जिहाद में भी हिस्सा लिया था। खुफिया अनुमानों के मुताबिक, छह हजार से ज्यादा तब्लीगियों को पाकिस्तान स्थित आतंकी शिविरों में प्रशिक्षित किया गया था। अफगानिस्तान में सोवियत संघ की हार के बाद हरकत उल मुजाहिदीन और हूजी कश्मीर में सक्रिय हो गए थे और उन्होंने सैकड़ों बेगुनाह नागरिकों की हत्या की। हरकत उल मुजाहिदीन के सदस्य बाद में मसूद अजहर के नेतृत्व में बने आतंकी संगठन जैश ए मुहम्मद में शामिल हो गए। गोधरा में कारसेवकों को जिंदा जलाने में तब्लीगी जमात पर संदेह जताया गया था।
स्लीपर सेल तैयार करने के लिए विदेशी प्रचारकों का किया जाता था इस्तेमाल
भारतीय खुफिया अधिकारी और सुरक्षा विशेषज्ञ बी. रमन ने अपने एक लेख में लिखा था कि तब्लीगी जमात की पाकिस्तान और बांग्लादेश स्थित शाखाओं के हरकत उल मुजाहिदीन, हरकत उल जिहाद अल इस्लामी, लश्कर ए तैयबा और जैश ए मुहम्मद जैसे आतंकी संगठनों के साथ जुड़ाव को लेकर समय-समय ध्यान जाता रहा था। रमन ने इस बात का खास तौर पर उल्लेख किया था कि हरकत उल मुजाहिदीन जैसे आतंकी संगठनों के सदस्य खुद को तब्लीगी जमात का प्रचारक दर्शाकर वीजा हासिल करते थे और विदेश जाकर पाकिस्तान में आतंकी प्रशिक्षण के लिए मुस्लिम युवाओं की भर्ती करते थे। जमात ने चेचेन्या, रूस के दागिस्तान क्षेत्र, सोमालिया और कुछ अफ्रीकी देशों में बड़ी संख्या में समर्थक तैयार कर लिए थे। इन सभी देशों की खुफिया एजेंसियों को संदेह था कि पाकिस्तान स्थित आतंकी संगठन अलग-अलग देशों के मुस्लिम समुदायों में स्लीपर सेल तैयार करने के लिए इन प्रचारकों का इस्तेमाल कर रहे थे।
अमेरिकी जांच के दायरे में आई थी तब्लीगी जमात
तब्लीगी जमात कभी अमेरिकी जांच के दायरे में भी आई थी। अमेरिका में आतंकी हमले के बाद संघीय जांचकर्ताओं ने तब्लीगी जमात में रुचि दिखाई थी। इस पर अलकायदा में भर्ती के लिए जमीन तैयार करने का संदेह था।
न्यूयॉर्क टाइम्स में 14 जुलाई, 2003 को प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार, एफबीआइ की अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद टीम के उपप्रमुख माइकल जे. हेइम्बच का कहा, ‘हमने अमेरिका में तब्लीगी जमात की उल्लेखनीय मौजूदगी पाई है और हमने यह भी पाया है कि अलकायदा भर्ती के लिए इनका इस्तेमाल करता है।’ हालांकि न तो तब्लीगी जमात और न ही इसका कोई सदस्य किसी अपराध या आतंकवाद का समर्थन करने के मामले में आरोपित किया गया है। इसके बावजूद अमेरिकी अधिकारी ने इस संगठन को लेकर सचेत रहने को कहा।
जबकि जमात ने अमेरिकी सरकार के उस तर्क को पूरी तरह अनुचित करार दिया कि यह संगठन आतंकियों की भर्ती के लिए जमीन तैयार करता है। तब्लीगी जमात के नार्थ अमेरिकन लीडरशिप काउंसिल के नेता अब्दुल रहमान खान ने कहा, ‘यह बहुत गंभीर आरोप है जो पूरी तरह झूठ है।’ वहीं, विकिलीक्स दस्तावेजों के मुताबिक अमेरिका द्वारा हिरासत में लिए गए 9/11 हमले के कुछ अलकायदा संदिग्ध कई साल पहले निजामुद्दीन स्थित तब्लीगी जमात परिसर में रुके थे।