कोरोना वायरस ने पूरी दुनिया को बदल कर रख दिया है। सत्ता के केंद्र डगमगा रहे हैं। कोई महाशक्ति अपनी ताकत खत्म होने की आशंका में जी रहा है तो कोई नई महाशक्ति बन कर उभरने के सपने पाले हैं। कहीं मौके हैं तो कहीं आशंका और डर। इस सबके बीच अब यह साफ होता जा रहा है कि इस बीमारी के खिलाफ चल रही लड़ाई दिनों या महीनों की नहीं, बल्कि सालों की होने जा रही है। दुनिया के देश इस हकीकत को समझ भी चुके हैं और उसके लिए अभी से तैयारी भी शुरू कर दी है।
लॉकडाउन इलाज नहीं, घर से बाहर निकलना ही होगा
कोरोना वायरस से बचाव का तरीका लॉकडाउन नहीं है। यह सिर्फ वक्त देता है। इस वक्त का इस्तेमाल जिन देशों ने अपनी तैयारी को मजबूत करने में किया, वही आज एक हद तक कोरोना के खिलाफ जंग में जीतता नजर आ रहा है। लेकिन जिसने इसे इलाज मान लिया, वह हार रहा है। इस हकीकत को दुनिया के देश भी समझ चुके हैं और उसी के अनुसार अपनी नई रणनीति तैयार कर रहे हैं।
लंबी लड़ाई के शुरू हो चुकी है तैयारी
इसे देखते हुए चीन, ब्रिटेन, फ्रांस और अमेरिका समेत कई देशों ने कोरोना से लंबी लड़ाई की तैयारी शुरू कर दी है। सबकी तैयारी अलग अलग है। ऑस्ट्रेलिया में बड़े पैमाने पर पीपीई, ग्लब्स, मास्क आदि खरीद कर स्टोर किए जा रहे हैं, ताकि लंबे समय तक चलने वाली इस लड़ाई को लड़ा जा सके। इसके लिए दुनिया में हर जगह से पीपीई आदि खरीदी जा रही है। रिपोर्ट बताती है कि चीन से घटिया पीपीई मिलने की खबर के बीच ऑस्ट्रेलिया खुद इनमें बदलाव कर उसे गुणवत्ता पूर्ण बनाने में जुटा है।
इसी तरह की तैयारी अमेरिका ने भी शुरू कर दी है। वहां संघ और राज्यमिल कर बड़े पैमाने पर पीपीई और दूसरी मेडिकल सामान खरीद रहे हैं। दुनिया में सबसे ज्यादा प्रभावित होने के बाद भी अमेरिका ने पूरी तरह से लॉकडाउन नहीं किया। कुछ हद तक लॉक डाउन लगाने के बाद अब वहां इसे हटाने की तैयारी चल रही है। वजह साफ है। देश और राज्य मानकर चल रहे हैं कि बचाव के साथ आर्थिक गतिविधियों को जारी रखना ही बेहतर है। इसके साथ स्वास्थ्य सुविधाओं को और बेहतर किया जा रहा है।
इसका बेहतरीन उदाहर इटली भी है। कोरोना से हुई यहां की तबाही पूरी दुनिया ने देखी है। अब यह देश भी लॉकडाउन हटा कर लड़ाई की तैयारी पर अपना ध्यान केंद्रित कर रहा है। यह देश अपने स्वास्थ सुविधाओं को और मजबूत करने में जुट गया है। अस्पतालों में कोविड बेड की क्षमता बढ़ा कर तीन गुनी की जा रही है। वेंटिलेटर खरीदे जा रहे हैं। व्यापक टेस्ट की व्यवस्था की जा रही है। यह सब कुछ किया जा सकते, इसके लिए आर्थिक गतिविधियां भी शुरू कर दी गई है। मंगलवार को यहां करीब साढ़े 40 लाख कामगार अपने ऑफिस और कार्य स्थलों पर लौट आए।
ब्रिटेन की तैयारी भी कुछ इस तरह की है। यह देश टेस्ट को नई उंचाई तक ले जाने की तैयारी कर रहा है। इसके लिए इसने 100 फीसदी टेस्टिंग की रणनीति तैयार की है। इसकी शुरूआत भी की जा रही है। टीम हर घर जा कर लोगों के हालात और स्वास्थ की जानकारी जुटा रही है। इसी के साथ इसने भी लॉकडाउन को खोलने और आर्थिक गतिविधियों को शुरू करने की तैयारी कर ली है।
यहां यह बात काफी महत्वपूर्ण है कि इन सभी देशों में कोरोना संकट समाप्त नहीं हुआ है, बल्कि अब भी हर दिनों हजारों नए केस आ रहे हैं और हजारों लोगों की मौत भी हो रही है। इन देशों के सामने अब विकल्प खुद को घरों में बंद कर बैठने का नहीं रह गया है। अब ये देश लड़ने और आगे बढ़ने की रणनीति पर बढ़ चुके हैं।
कई देशों ने इसी मॉडल से विजय पाई
दुनिया के कई देश हैं जिन्होंने लॉकडाउन नहीं बल्कि लड़ाई से इस बीमारी को काबू पाया है। इसका सबसे बेहतरीन उदाहर साउथ कोरिया और ताइवान जैसे देश हैं। इन देशों ने कोरोना वायरस की चपेट में आने के बाद भी संपूर्ण लॉकडाउन नहीं किया, बल्कि जगह जगह टेस्टिंग बूथ खोल दिए। लोगों को जरा सा भी शक होने पर वहां जाकर आसानी से कोविड टेस्ट कराने की सुविधा दी। जिनमें संक्रमण पाया गया उन्हें इलाज की सुविधा दी गई। नतीजा, ये देश आज सारी गतिविधियां करते हुए भी कोरोना से लगभग मुक्त हैं। हालांकि इसमें नागरिकों की सजगता का भी बड़ा हाथ रहा। हर व्यक्ति मास्क का इस्तेमाल करता है और भीड़ भाड़ से बचता है। साफ साफाई का पूरा ध्यान रखता है।
जान या जहान, या फिर दोनो
यह सवाल भारत के संदर्भ में बेहद अहम हो जाता है। इस बात का फैसला बिल्कुल भी आसान नहीं होता । लेकिन हकीकत यह भी है कि ना तो सिर्फ जान बचाने का विकल्प चुना जा सकता है, ना सिर्फ जहान का। दरअसल दोनों एक दूसरे के पूरक हैं। इसलिए दोनों को बचाने का विकल्प चुनना होगा। और यहीं हो खतरा भी सामना आ जाता है, जिसे हर हाल में देश और लोगों को जूझना होगा। 135 करोड़ की आबादी को संपूर्ण लॉकडाउन में समेट पाना लगभग असंभव सा है। हर किसी की अलग समस्या है। केंद्र और राज्य की सरकारें इस काम को कर पाएगी, अब ऐसा लगता नहीं है। राजनीतिक हितों के स्वार्थ ने 40 दिनों के लॉकडाउन को कई बार तार तार किया। फिर चाहे दिल्ली से महा पालायन हो, या फिर मुंबई, सूरत, बैंगलोर, हैदराबाद में लाखों मजदूरों का घर वापसी के लिए किया गया विद्रोह। अब तो सरकार का सब्र भी छिजने लग गया है। दिल्ली से लेकर महाराष्ट्र और कर्नाटक से लेकर अन्य प्रांतों की सरकारी कह चुकी हैं कि उनका खजाना खाली हो चुका है। लिहाजा लॉकडाउन को ज्यादा दिनों तक जारी नहीं रख पाएंगे। ऐसे में अब देश के सामने कोरोना से लड़ने और आगे बढ़ने के अलावा कोई विकल्प नहीं दिख रहा।
अब आम लोगों को ही अपनी जान और जहान दोनों की चिंता करनी होगी
52 दिन बाद जब लॉकडाउन का तीसरा चरण खत्म होगा तो आम लोगों पर बड़ी जिम्मेदारी होगी। उन्हें ही अपनी जान और जहान दोनों की चिंता करनी होगी। हो सकता है यह चिंता कुछ दिनों के लिए और टल जाए, लेकिन ऐसा होगा जरुर। फिर आपको और हमें ही तय करना होगा कि जान चाहिए, या बर्बादी। इस लड़ाई में केवल और केवल एक ही अस्त्र हमारा सहारा है- बचाव और सजगता। सरकार की क्षमता चूक चुकी है। 40 दिनों की अवधि में शायह दी किसी राज्य सरकार ने अपनी अपनी आबादी के हिसाब से चिकित्सीय सुविधो को सुदृढ करने की ईमानदार कोशिश की है। इसलिए भूल जाइए कि महामारी की स्थिति में राज्य का स्वास्थ्य संरचनाएं 100 फीसदी बीमारों का बोझ उठाने को तैयार है। बस आप बेहद सतर्क रहें और इसी सतर्कता के साथ जहान बचाने की चिंता कीजिए।
वरदान के रुप में ये साथ होगा, अगर किस्मत साथ दी तो
प्रकृति के प्रकोप से बचने में दो कारक वरदान बन सकते हैं। पहला तो हमारा रोग प्रतिरोधक क्षमता। अगर भारत की हर्ड इम्युनिटी जैसी थ्योरी काम करती है, तो हम भारतीय इसका शुक्रगुजार हो सकते हैं। क्योंकि दुर्भाग्य से बड़ी आबादी बहुत कम हाइजेनिक परिस्थितियों में भी जीने के आदी रहे हैं। मलेरिया, टीबी से जूझते शरीर ने कुछ ऐसी ताकत विकसित की है, जो कुछ हद तक हमारी सहायक सिद्ध हो सकती है। दूसरा, अगर दुनिया ने इस बीमारी का कोई टीका या कारगर इलाज ढूंढ लिया तो..।