आखिरी इच्छा यही कि भगवान राम के भव्य और दिव्य मंदिर का दर्शन कर लूं, फिर दुनिया से विदा लूं : कल्याण सिंह

यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह आज 89 साल के हो चुके हैं। लेकिन राम मंदिर का नाम आते ही उनकी आंखें अब भी चमक उठी है। उनके ही शासन काल में बाबरी मस्जिद का विध्वंस हुआ। आरोप लगा कि उन्होंने कार सेवकों पर गोलियां चलाने का आदेश नहीं दिया। इसके चलते उनकी सरकार भी चली गई। इन सब बातों के साथ वो एक साथ 500 सालों के संघर्ष की कथा में खो जाते हैं। आज जब राम मंदिर बनने का काम शुरू ही होने वाला है, उनकी यादें, स्मरण और इच्छाएं बहुत कुछ कहती हैं। वो कहते हैं, अयोध्या में भव्य व दिव्य राम मंदिर के दर्शन हो जाएं, उसके बाद ही दुनिया से विदा लूं।  प्रस्तुत हैं, राष्ट्रीय मीडिया में प्रकाशित उनका हालिया साक्षात्कार

लंबे इंतजार के बाद राम मंदिर का निर्माण शुरू होने जा रहा है। आपकी प्रतिक्रिया?


विदेशी आक्रांता बाबर के सिपहसालार मीर बाकी ने 1528 में राम मंदिर को तोड़कर गुलामी का प्रतीक ढांचा खड़ा किया था। उसने हिंदुओं का अपमान करने के लिए राम मंदिर को तोड़ा। कौन जाने विधाता ने लिखा था कि मैं मुख्यमंत्री बनूंगा, कारसेवा होगी, ढांचा गिरेगा और सरकार चली जाएगी और भव्य राम मंदिर का मार्ग प्रशस्त होगा। करोड़ हिंदुओं की आकांक्षाओं व भावनाओं की तरह मैं भी चाहता था कि अयोध्या में भव्य राम मंदिर बने। प्रसन्नता व्यक्त करने के लिए मेरा पास शब्द नहीं। 5 अगस्त को प्रधानमंत्री भूमि पूजन करने आ रहे हैं। मैं चार अगस्त को ही अयोध्या पहुंच जाऊंगा। पांच अगस्त को शिलान्यास व मंदिर निर्माण के शुभारंभ कार्यक्रम में शामिल हूंगा। मंदिर निर्माण यह राष्ट्र के लिए टर्निंग प्वाइंट है।


6 दिसंबर, 1992 कितना चुनौतीपूर्ण दिन था। कहा जाता है कि आपने कारसेवकों पर गोली चलाने के आदेश नहीं दिया, उसी दिन ढांचा टूटा और आपकी सरकार भी चली गई ?

6 दिसंबर 1992, को फैजाबाद के डीएम ने रिपोर्ट भेजी थी कि केंद्रीय सुरक्षा बलों की चार कंपनियां मिल गई हैं। मजिस्ट्रेट भी मिल गए हैं। फोर्स अयोध्या की तरफ चल पड़ी है, लेकिन साकेत महाविद्यालय से आगे नहीं बढ़ पा रही है। करीब साढ़े तीन लाख कारसेवक हैं। उन्होंने पूछा था कि गोली चलाई जाए या नहीं? मैंने अपनी कलम से फाइल पर लिखा कि गोली चलाने का कोई औचित्य नहीं है। हजारों जान चली जाएंगी। पूरे देश से कारसेवक आए हैं। सभी जगह इसकी प्रतिक्रिया होगी, देश भर में आग की लपटे उठने लगेंगी। मुझे गर्व है कि मैंने गोली चलाने का आदेश नहीं दिया। मेरे ऊपर किसी के प्राण लेने, हत्या का आरोप नहीं लगा।

आपने इस्तीफा क्यों दिया?
ढांचा गिरने के बाद मैंने इसके लिए किसी को दोषी नहीं ठहराया। पूरा जिम्मा अपने ऊपर लिया। नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए शाम को साढ़े पांच बजे राज्यपाल को इ्स्तीफा सौंप दिया। मुझे सरकार जाने का न दुख रहा, न हो कोई मलाल। 

क्या मुख्यमंत्री बनने तक आपको राम मंदिर निर्माण की उम्मीद थी?
जैसे मैंने सत्ता संभाली थी मन में विश्वास था कि एक दिन राम मंदिर जरूर बनेगा। मंदिर के लिए आजादी के बाद पहली बार इतना बड़ा आंदोलन हुआ। लोगों ने गोलियां खाईं। 1990 में गोलियां चलाई गईं। कोठरी बंधुओं जैसे कितने ही लोगों ने अपनी जान दी। विधाता ने 6 दिसंबर, 1992 का दिन लिखा। यदि उस दिन अयोध्या में ढांचा न गिरता तो सुप्रीम कोर्ट का जनादेश कुछ और होता। 6 दिसंबर की तरह ही आने वाले 5 अगस्त का दिन इतिहास के पन्नों में दर्ज होगा जब प्रधानमंत्री राम मंदिर का शिलान्यास करेंगे। उस दिन मेरी जीवन भर की कमाई का फल मिल जाएगा। मैंने राम मंदिर पर कभी समझौता नहीं किया। मुख्यमंत्री रहते दृढ़ता से फैसले लिए और उन्हें क्रियान्वित किया।