रायपुर। द वायस 24 स्पेशल।
छत्तीसगढ़ में करीब डेढ़ लाख शिक्षक हैं..। इनमें 1.46 लाख के करीब वो शिक्षक हैं, जो भर्ती तो शिक्षाकर्मी के रूप में हुए, लेकिन लंबे संघर्ष के बाद शिक्षक पदों पर संविलियन करवाने में सफल रहे..। हालांकि शुरू से ही उन्हें सरकार का सौतेलापन सहना पड़ा..। पहले उन्हें शिक्षक की तुलना में कमतर सुविधा और तवज्जों दी गई..। अब जब अधिकांश शिक्षाकर्मी शिक्षक बन गए हैं, तो शासन के अन्य कर्मचारियों की तुलना में सरकारी सौतेलेपन को सहना पड़ रहा है..। इसकी बड़ी बानगी बनी है कोरोना महामारी का यह काल..।
छत्तीसगढ़ में कोरोना के खिलाफ जो लड़ाई लड़ी जा रही है, उसका बड़ा आधार स्तंभ ये शिक्षक बने हैं..। सरकार ने इनकी ड्यूटी कोरोना वॉरियर के रूप में हर जगह लगा दी है..। ये शिक्षक रेलवे स्टेशन पर तैनात होते हैं और बाहर से आने वाले मजदूर और अन्य लोगों की स्क्रीनिंग करते हैं..। अगर कोई व्यक्ति कोरोना पॉजिटिव पाए जाते हैं तो उन्हें लेने जो एंबुलेंस की टीम पहुंचती है, उसमें भी एक शिक्षक की ड्यूटी लगी होती है..। ये कोरोना पेशेंट को घर से ले जाकर अस्पताल में भर्ती कराते हैं..। यही शिक्षक गांव-शहर में कोरोना मरीज के संपर्क में आए लोगों की कांटेक्ट हिस्ट्री तलाशते हैं..। इन्हीं शिक्षक की ड्यूटी गांव-गांव, शहर, मुहल्लों में कोरोना सर्वेयर के रूप में भी लगती है..। ये शिक्षक लोगों के घरों तक जा जा कर सर्दी-खांसी, बुखार वाले लोगों का पता लगाते हैं, उन पर नजर रखते हैं..। लेकिन जब यह शिक्षक कोरोना वॉरियर की ड्यूटी निभाते निभाते खुद संक्रमित हो जाए या उसकी मृत्यु हो जाए, तो राज्य की सरकार उसे दोयम दर्जे का कर्मचारी मानते हुए अपनी जवाबदेही से मुकर जाती है..। उन्हें दूसरे कर्मचारियों की तरह ना तो बीमा का लाभ मिलता है, और ना ही दूसरे कर्मचारियों की तरह शिक्षक के आश्रितों को कोई अनुकंपा नियुक्ति मिलती है..। और तो और, एंबुलेंस टीम में शामिल शिक्षकों को छोड़ दें, तो कोरोना वारियर के रूप में काम कर रहे बाकी शिक्षकों को पर्सनल प्रोटेक्ट इक्वीपमेंट तक नहीं दी जाती..। ये शिक्षक खुद के या फिर और भगावन के भरोसे कोरोना से लड़ते हैं.. और कभी कभी लड़ते लड़ते मर भी जाते हैं..।
अब एक त्रासदी और जुड़ी है..। इतने रिस्क वाले काम में लगे इन्हीं शिक्षकों से अपेक्षा की जाती है कि वो इन तमाम ड्यूटी को निभाने के बाद बच्चों को पढ़ाने का भी काम करें..। बच्चों को पढ़ाना टीचर का काम ही है, लेकिन सरकार इस कोरोना काल में भी चाहती है कि शिक्षक गली, मोहल्लों में जाएं.. पालकों को समझाए और फिर गली मोहल्लों में ही क्लास लेकर बच्चों को पढ़ाएं..। एयर कंडिशन कमरों में बैठ कर नीति बनाने वाले अफसरों को इस जमीनी हकीकत से भी कोई वास्ता नहीं होता कि गांव-मोहल्लों में खुद अभिभावक और बच्चों को माता-पिता ऐसे शिक्षकों से कितने डरे हैं..। कुछ शिक्षकों ने ऐसी कोशिश की तो बाकायदा गांव के सरपंच ने इन शिक्षकों के गांव में घुसने पर ही रोक लगा दी..। उनका मानना है कि शिक्षक शहर और कस्बों से आते हैं, जो कोरोना से ज्यादा संक्रमित हैं..। ऐसे में ये शिक्षक खुद बच्चों के लिए खतरा बन गए हैं..। हकीकत भी ऐसी ही है..। हाई रिस्क ड्यूटी करने वाले यही टीचर बच्चों के बीच जाकर पढाएंगे तो बच्चे संक्रमित होंगे भी..। अमेरिका की उदाहरण सामने है..। वहां स्कूल खोलते ही सैकड़ों बच्चे कोरोना पॉजिटिव हो गए..। फिर भी इन टीचर को मोहल्ला क्लास लेने के अधिकारी दवाब डालते हैं..। लेकिन सरकार की नाक और छवि पर कोई सवाल न कर दे, इसलिए दलील दी जाती है कि शिक्षक खुद स्व प्रेरणा से मोहल्ला क्लास लेते हैं..।
इन तमाम स्थितियों को देख कर तो यही लगता है कि सरकार ने मान लिया है कि कि प्रदेश के शिक्षक कोरोना प्रूफ हैं..। उन्हें कोरोना हो ही नहीं सकता..। और हो भी जाए तो कोई नुकसान तो बिल्कुल नहीं होगा..। वर्ना इस सरकार के स्वास्थ या पुलिस विभाग के कर्मचारी जब कोरोना वारियर बन कर अपनी जान गंवाते हैं तो यही सरकार उन्हें 50 लाख रूपये की बीमा का लाभ देती है..। आश्रितों को अनुकंपा नौकरी का लाभ भी मिलता है..। लेकिन शिक्षक मरें तो ऐसा कुछ नहीं मिलेगा..। बीमा का लाभ तो किसी भी शिक्षक को नहीं मिलता..। प्रदेश में 16 हजार ऐसे शिक्षक बचे हैं, जिनका संविलियन नहीं हुआ है..। यदि इन्होंने जान गंवाई तो इनके परिजन को अनुकंपना नौकरी की पात्रता भी नहीं होगी..। अब आप क्या बोलेंगे.. यही ना कि गजब है सरकार आपकी सोच और संवेदनशीलता भी ..। आखिर किस पैमाने पर तैयार करते हैं ऐसे नियम..। कोई आधार हो तो लोगों को भी बताइए..।शिक्षकों के प्रति संवेदनहीनता का यह इकलौता मामला नहीं है..और भी कई मामले हैं..।