अस्पताल में भर्ती कोरोना मरीज को होता है जबरदस्त मानसिक तकलीफ, डॉक्टर दे रहे हैं ये सलाह

रायपुर। देश मे कोरोना मरीजों की तादात करीब 14 लाख तक पहुंच गई है..। एक शोध से पता चला है कि अस्पताल में भर्ती कोरोना मरीजों को होम क्वारंटीन मरीजों से ज्यादा मानसिक तकलीफ हो सकती है। बंगलूरू स्थित नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ मेंटल हेल्थ के मनोरोग विभाग के डॉ. चेतन बासवरजप्पा और डॉ. गुरु एस गौड़ा का कहना है कि व्यक्ति को शारीरिक-मानसिक रूप से मजबूत होना होगा। अस्पताल में मरीजों खासकर पहले से ही मनोरोग के शिकार लोगों के लिए मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी परेशानियां घातक हो सकती हैं। तो जानते हैं, क्या परेशानी हो सकती है और कैसे बचाव संभव है….

अवसाद और घबराहट
कोरोना के डर और परिवार से अलग होने पर अवसाद में जाने और घबराहट के कारण मरीज असहाय महसूस करता है और स्वभाव में भी बदलाव आने लगता है। दैनिक काम तक नहीं कर पाता है। आत्महत्या के विचार आ सकते हैं ।
लक्षणों को पहचानना होगा

मानसिक कमजोरी के साथ डर, घबराहट, चिड़चिड़ापन, गुस्सा, शून्यता, तनाव, निराशा और उदासी होगी। यह मानसिक स्वास्थ्य बिगड़ने का शुरुआती लक्षण है।
इन पांच बातों का रखना होगा ध्यान

कयासबाजी और अफवाहों पर विश्वास न करें
मानसिक तकलीफ होने पर तुरंत डॉक्टर को बताएं
खुद को शारीरिक व मानसिक रूप से एक्टिव रखें
पहले से मनोरोग के मरीज नियमित समय पर दवा लें
किसी दूसरे गंभीर मरीज से अपनी तुलना न करें

स्वास्थ्य को लेकर चिंता

अस्पताल में मरीज को स्वास्थ्य की चिंता सताती है। रिपोर्ट पॉजिटिव आने का डर है।  ये मनोरोग के लक्षण हैं, जो सामान्य से गंभीर हो सकते हैं। ‘पैनिक अटैक’ आ सकता है। वह बुरी तरह डरा-सहमा महसूस करेगा।
नशे की लत तकलीफदेह

अस्पताल में सिगरेट-शराब और अन्य नशा छोड़ना होगा। इससे जिंदगी खत्म होने का डर हावी हो सकता है। मन में विचार आ सकते हैं कि क्या उसने अपने जीवन में सब काम ठीक से किया। गलती को लेकर चिंतित रहेगा। अस्पताल में चार से 14 दिन का ये समय तकलीफदेह हो सकता है।

अस्पताल से पीएसटीडी का खतरा

अस्पताल से छुट्टी के बाद मरीज को पोस्ट ट्रॉमेटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर हो सकता है। इसके लक्षण एक महीने में आते हैं। कुछ मामलों में वर्षों तक पता नहीं लगता। पीड़ित उस विषय पर बात नहीं करते, जिस कारण उनके साथ ये सब हुआ होता है।

सहयोग की उम्मीद

संक्रमित कुछ मरीज दूसरों को देख मजबूत बनते हैं। स्वास्थ होने वाले पड़ोसी मरीज से बात कराने का मरीज पर सकारात्मक असर पड़ेगा। संभव हो तो रोगी को ऐसी कोई खबर न दी जाए जिससे मन को आघात पहुंचे।