रायपुर। द वायस 24.in स्पेशल। ये इश्क़ नहीं आसाँ इतना ही समझ लीजे … इक आग का दरिया है और डूब के जाना है..। इश्क में सितम की इंतहा बयान करने वाली पंक्तियां… आज उस हर शख्स की जुबां पर होती है, जो अपना हक पाने के लिए सिस्टम से टकरा जाते हैं..। शायद तभी छत्तीसगढ़ के हजारों बेरोजगार आज यही कह रहे हैं.. शिक्षक बनना नहीं आसां, इतना ही समझ लीजे… कोरोना का कहर है, सरकार का सितम है, मर-पिट कर पार जाना है..। सत्ता की कड़वी सच्चाई देखिए कि.. दो साल पहले सरकार के यही चेहरे शिक्षाकर्मियों के आंदोलन में दिन रात बैठ कर उनकी मांगों को जायज ठहराते थे… आज सरकार में हैं तो भावी शिक्षकों पर मुकदमें दर्ज करवा रहे हैं..।
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दरअसल, पिछले साल मार्च में सरकार ने 14,580 पदों पर शिक्षकों की सीधी भर्ती का विज्ञापन निकला था..। दशकों बाद ऐसा हुआ था जब शिक्षकों की सीधी भर्ती होने जा रही थी। बेहतर भविष्य का सपना पाले हजारों युवाओं ने अपनी लगी लगाई नौकरी छोड़ दी.. दिन रात लगकर तैयारी की.. एग्जाम दिया और पास भी हो गए..। सपने हकीकत बनने वाले थे.. लेकिन सरकार की मंशा को भला कौन जाने..? फरवरी 2020 तक सबकुछ हो चुका था.. बस पात्र-अपात्र की लिस्ट निकलती और युवाओं के हाथ में नियुक्ति पत्र होता..। लेकिन कोरोना की आहट ने सरकार की दबी हुई मंशा को पूरा करने का मौका दे दिया..। सरकार ने अघोषित तौर पर भर्ती प्रक्रिया पर रोक लगा दी..।
सरकार की मंशा ने प्रदेश के उन 22 हजार युवाओं को पलभर में एकजुट कर दिया जिनका वेरिफिकेशन पूरा हो चुका था..। ये सब खुद को शिक्षक बनने से महज एक कदम दूर पा रहे थे..। लेकिन अब यही एक कदम मीलों का फासला नजर आने लगा..। इनके पास खोने को कुछ नहीं था .। घरों पर बेरोजगार भूखों मरने से बेहतर सड़क पर लड़कर मरना आसान नजर आऩे लगा..। चंद दिनों में ही छत्तीसगढ़ बीएड डीएड प्रशिक्षित संघ के नीचे सारे के सारे शिक्षक उम्मीदवार एकजुट होकर राजधानी की सड़कों पर उतर आए..।
22 अगस्त को बूढ़ातालाब धरना स्थल पर इन्होंने अपनी ताकत दिखा दी..। कोरोना काल में भी धरना प्रदर्शन करने की उनकी हिमाकत ने साफ कर दिया, इन्हें और रोक पाना मुश्किल होगा..। नतीजा यह हुआ कि सरकार ने 1 सितंबर को व्यापमं मेरिट लिस्ट की वैधता एक साल और बढ़ा दी.. यानि जो भर्ती प्रक्रिया 30 सितंबर से खुद ब खुद निरस्त होने लग जाती है, वह एक साल और बढ़ गई..। लेकिन बेरोजगारी की आग को बुझाने में राहत के ये छींटों काफी नहीं थे। प्रदेशे के युवाओं को लग गया कि सरकार एक साल और उन्हें बेरोजगार रखने वाली है.. इसलिए 7 सितंबर को सीएम हाउस का घेराव करने फिर से राजधानी की सड़कों पर इकट्ठा हो गए..।
राजधानी में कोरोना संक्रमण के चरम काल में भी हजारों युवाओं की भीड़ अभेद्य बैरिकेटिंग और उसके आगे तैनात पुलिस की दीवार से टकरा गई..। सत्ता बल तुरंत सक्रिय हुआ.. पुलिस ने लाठी के दम पर उन्हें वापस धकेल दिया…. और पीछे छूट गया.. टूटे हुए चश्मे, गिरी हुई कलम, टूटी घड़ियां..और मुड़ी-तुड़ी चप्पल- जूते..। कई शिक्षकों को चोट आईं.. कई पुलिसवाले भी जख्मी हुए..। भावी शिक्षकों के दुस्साहस की कीमत उन्हें पुलिसवालों की गंदी और भद्दी गालियां खाकर भी चुकानी पड़ी..।
सरकार की नजरों में भले ही उनका यह दुस्साहस था.. लेकिन भावी शिक्षकों की नजर में अस्तित्व की लड़ाई थी..। घर में दुधमुंह बच्चे, बूढ़े मां-बाप और पत्नी को छोड़ कर यूं कोरोना के मुंह में अपने सिर देने की बेबसी ना तो सरकार समझ सकी और ना शासन में बैठे अधिकारी.. । वो समझने को तैयार ही नहीं थे इस मन स्थिति में आ चुके बेरोजगार के पास अब खोने को और कुछ है भी नहीं..। बजाय कि उनकी बातें सुनतें, उनकी हालात को समझकर कोई रास्ता निकालते, इस सरकार ने भी वही गलती की जो हर सरकार करती आई है..। दमन और डर के दम पर आंदोलन को कुचल डालने की कोशिश..। सरकार ने संघ के दर्जनों पदाधिकारी समेत अज्ञात लोगों पर मुकदमा दर्ज करा दिया..। उन्हें धमकाया गया कि एफआईआर दर्ज कर उनके सरकारी नौकरी पाने के सपने को ही खत्म कर दिया जाएगा..। सरकारी आदेश की अवहेलना और महामारी एक्ट के खिलाफ काम करने की सजा दी जाएगी..।
अब ये भावी शिक्षक खुल कर मैदान में हैं..। ऐलान कर चुके हैं कि दमन तो दमन ही सही..। हर जिले में गिरफ्तारी दी जाएगी..। लगता है, यह सरकार भी वही लगती दोहरा रही है जो पूर्व की रमन सिंह की सरकार करती रही है..। लेकिन शिक्षाकर्मियों की लड़ाई उसके सामने नजीर की तरह रहेगी.. । इनकी मांगे भी पूरी हुई, और भाजपा के दामन पर कभी ना मिट पाने वाला दमन का दाग भी लग गया..। और अब फिर से नारे बुलंद हो रहे हैं.. जब जब युवा बोला है… तब तब सिंहासन डोला है..।