रायपुर। छत्तीसगढ़ सरकार की पढ़ाई तुंहर द्वार योजना की आज नीति आयोग ने जमकर सराहना की है। घने जंगलों के बीच बच्चों को पढ़ाने का प्रयास दिल को राहत देती है। लेकिन, प्रदेश के दूसरे हिस्सों से आई तस्वीर चिंतित करने वाली है।
आज हम शिक्षा विभाग के सामने एक सवाल खड़ा कर रहे हैं..। हम सवाल कर रहे हैं कि शिक्षा विभाग और उसके शीर्ष पर बैठे अधिकारी आखिर प्रदेश के गरीब बच्चों को प्रयोगशाला की सामग्री क्यों मान बैठे हैं। क्यों पढ़ाई के नाम पर उनकी जान को जोखिम में डालना चाहते हैं..। इस कोरोना काल में, जबकि प्रदेश में संक्रमण का खतरा अपने चरम पर है, और मौत का आंकड़ा खौफनाक मंजर पैदा कर रहा है, शिक्षा विभाग मोहल्ला क्लास लगनाने पर तुला है..। वो भी इस तरह से, कि पढ़ाई कराने में उसका नाम भी हो जाए, लेकिन कहीं कोई अनहोनी हो तो कोई उसका दामन भी ना पकड़ सके..। यानी वाहवाही हमारी और बदनामी किसी और की।
देखिए हमारी यह खास रिपोर्ट-
अब इन तस्वीरों को देख कर आप खुद बताइए कि अगर ऐसे ही पढ़ाना है तो फिर शिक्षा विभाग स्कूल क्यों नहीं खोल देता है..। अगर स्कूल प्रांगण में या किसी भवन के बरामदे में ऐसी क्लास लगानी हो तो स्कूल क्या बुरा है? और जिस तरह ये बच्चे बिना मास्क के, बिना पर्याप्त दूरी पर बैठे पढ़ाई कर रहे हैं, इसे देख कर इस बात की गारंटी कौन देगा कि इससे किसी में संक्रमण नहीं फैलेगा..। यही सवाल तो प्रदेश के टीचर भी उठा रहे हैं..।
कोरोना संक्रमण के इस दौर में मोहल्ला क्लास से बच्चो में संक्रमण का खतरा अधिक है। अगर शासन को क्लास लगवानी है तो सम्पूर्ण जिम्मेदारी लेते हुए विधिवत स्पष्ट आदेश निकाले। लेकिन वह एक ओर मोहल्ला क्लास लेने के लिए ऐच्छिक आदेश निकाल रही है और दूसरे ओर अधिकारी शिक्षको पर मोहल्ला क्लास लगाने के लिए दबाव बना रहे है। अगर शासन को बच्चों की पढ़ाई की इतनी ही चिंता है तो स्कूल खोले। स्कूल से ज्यादा सुरक्षित जगह और नहीं हो सकती।
– वीरेंद्र दुबे, प्रदेश अध्यक्ष, शालेय शिक्षक संघ
लेकिन यह सब कुछ बिना किसी आधिकारिक आदेश के कराए जा रहे हैं।
सबको पता है कि अधिकांश शिक्षक शहरों में, कस्बों में या फिर जिला मुख्यालय में रहते हैं। यहां संक्रमण वैसे भी बहुत ज्यादा फैला है। अगर यहां से कोई टीचर गांव जाता है, बच्चों की मोहल्ला क्लास लेता है तो संक्रमण का खतरा बहुत ज्यादा हो जाएगा। खुद गांव के लोग, सरपंच इस खतरे से डरे हैं और कई जगह मोहल्ला क्लास का विरोध भी कर रहे हैं, लेकिन विभाग और अधिकारी को कोई कैसे समझाए। सिर्फ मौखिक आदेश के जरिए शिक्षकों को कभी कलेक्टर का, कभी कभी डीईओ का तो कभी बीईओ का डर दिखाया जाता है.. और उन्हें क्लास लेने के लिए मजबूर किया जाता है..।
यह पूरी तरह से अव्यवहारिक और विफल पहल है। बरसात के दिनों में गली मोहल्ला में क्लास लगाने से शिक्षक और छात्रों में संक्रमण फैलने की पूरी संभावना है। अभी तक चार शिक्षकों की कोरोना से मृत्यु हो चुकी है । यदि छात्रों में कोरोना संक्रमण फैलना शुरू हुआ तो कोई भी इसे रोक नही पायेगा। गली मोहल्लो में क्लास लगवाना तत्काल बंद करे सरकार। एक बेहतर विकल्प रेडियो या टेलीविजन से पढ़ाई हो सकती है।
केदार जैन, प्रांताध्यक्ष, सयुंक्त शिक्षा कर्मी /शिक्षक संघ
अब सवाल यह कि आखिर शिक्षा विभाग ऐसी जिद पर क्यों अड़ा है..। बच्चों की पढ़ाई हो सके, उस दिशा में उसका हर प्रयास स्वागतयोग्य है, लेकिन मोहल्ला क्लास के साथ जुड़े खतरे को अंदाज क्यों करना चाहता है.. और क्यों सब कुछ इतनी चोरी छिपे करने की जरुरत पड़ रही है.. । एक तरफ तो विभाग कहता है कि मोहल्ला क्लास से लेकर दूसरी तरह की पढ़ाई टीचर खुद अपनी स्व प्रेरणा से कर रहे हैं। विभाग इसके लिए किसी भी टीचर पर कोई दवाब नहीं डाला जा रहा है, लेकिन व्हाट्सऐप ग्रुप में या फिर मैसेज से, फोन से टीचर को मोहल्ला क्लास लेने की बाध्य किया जा रहा है..। दुर्ग के संभागीय आयुक्त को तो हल्ला मचने के बाद पत्र जारी कर कहना पड़ता है कि क्लास लगी तो डीईओ जिम्मेदार होंगे, क्योंकि 31 अगस्त तक तो स्कूल बंद है।
अब शिक्षा विभाग ही समझाए कि ऐसे काम क्यों हो रहे हैं..। सब कुछ पारदर्शी और स्पष्ट क्यों नहीं है..। कौन इस बात को स्वीकार करना चाहेगा कि शिक्षक ये सब खुद अपनी मर्जी से कर रहे हैं। ऐसे में सवाल तो खड़ा होगा ही क्या सच में शिक्षा विभाग बच्चों की पढ़ाई को लेकर गंभीर है या फिर अधिकारी अपनी वाहवाही के लिए बच्चों की जान को खतरे में डाल रहे है..।