लॉकडाउन के बीच मंगलवार को मुंबई के बांद्रा स्टेशन पर हजारों मजदूरों की उमड़ी भीड़ ने महाराष्ट्र से लेकर केंद्र की सरकार को सकते में डाल दिया। और जब तफ्तीश हुई, तो पता चला इसके पीछे विनय दुबे नाम का एक नाम हैं। यूपी के भदोही का विनय दुबे आज सलाखों के पीछे हैं। लेकिन उसके परिवार वालों का कहना है कि राजनीति विनय की बलि ले रही है। विनय दोषी नहीं है। जानिए, यूपी के विनय की कहानी.. जो शुरू होती है एक इंजीनियर बनने की चाहत से.. आगे बढ़ती है यूपी और मुंबई के चुनाव से होकर .. और आज कड़ी है सलाखों के भीतर।
भदोही जिले के औराई क्षेत्र के हरिनारायणपुर गांव निवासी जटाशंकर दुबे के पहले पुत्र विनय की जिंदगी में कुछ कर गुजरने की हसरत उसके होश संभालते ही दिखने लगी थी। यही वजह थी कि 2012 में वाराणसी शहर उत्तरी से विधानसभा का चुनाव अजय राय के सामने एनसीपी के टिकट पर लड़ा।
सफलता नहीं मिली तो पार्टी छोड़कर महाराष्ट्र में उत्तर भारतीय महापंचायत नाम से स्वयंसेवी संगठन बनाकर समाजसेवा में जुट गया। लेकिन, राजनीतिक से मोहभंग अब भी नहीं हुआ था। लिहाजा, महज सोशल मीडिया के फैन फॉलोअर्स के बूते पिछले लोकसभा चुनाव में मुंबई के ऐरोली सीट से निर्दलीय चुनाव मैदान में उतर गया, मगर फिर हार का सामना करना पड़ा।
इस बीच मुंबई में उत्तर भारतीयों की अगुवाई करने की हसरत को लॉकडाउन में मुफीद होने का मौका मिल गया और वह सोशल नेटवर्किंग साइट्स फेसबुक, ट्विटर, व्हाट्सएप आदि के जरिए लंबे-चौड़े पोस्ट कर मुंबई में उत्तर भारतीयों की नुमाइंदगी करने की राह पर चल पड़ा। इस बीच उसकी एक पोस्ट ने सोशल मीडिया पर खलबली मचा कर रख दी। आरोप है कि उसकी पोस्ट के कारण ही बड़ी तादाद में उत्तर भारतीय लोग बांद्रा में एकत्र हुए और लॉकडाउन तार-तार हो गया।
विनय की पैदाइश से लेकर पढ़ाई-लिखाई तक सब कुछ मुंबई में ही हुई। चार भाइयों में सबसे बड़ा विनय मुंबई से बीई कर रहा था, लेकिन प्रथम वर्ष में फेल होने के कारण पढ़ाई छोड़कर समाजसेवा की ओर मुड़ गया। तीन छोटे भाई निर्भय, अभय और अजय माता-पिता के साथ मुंबई में ही रहते हैं और पढ़-लिखकर विभिन्न कंपनियों में जॉब करते हैं। गांव में बड़े पिता रविशंकर कहते हैं कि एक बार उसे समझाया था कि वह राजनीति के चक्कर में न पड़े, लेकिन नहीं माना।
राजनीति में पिस रहा हमारा बेटा
विनय के परिवार का कहना है कि हमारा बेटा विनय राजनीति का शिकार हो रहा है। बांद्रा की इस भीड़ से उसका कोई लेना-देना नहीं है। विनय के भाई निर्भय ने कहा कि हमारे भाई को राजनीति का शिकार बना दिया गया है।
उन्होंने जो पोस्ट की थी, उसमें 18 अप्रैल को पैदल निकलने की बात कही थी, जबकि यह भीड़ 15 को ही एकत्र हो गई। इससे उनका कोई लेना-देना नहीं है। बाद की पोस्ट को भी अगर देखा जाए तो वह पोस्ट शाम के चार बजे की गई है, जबकि बांद्रा में भीड़ सुबह 10 बजे से ही लगनी शुरू हो गई थी। उनके साथ राजनीति हो रही है