कोरोना ने कैसे बदल दी दुनिया… ग्लव्स और मास्क पहनकर दी मां की चिता को अग्नि.. अस्थि विसर्जन के लिए ना पंडित मिले, ना मुंडन के लिए नाई

कोलकाता। कोरोना वायरस के डर ने पूरे देश को घरों में कैद होने पर मजबूर कर दिया है. यह डर ऐसा है कि लोग किसी के अंतिम संस्कार में शामिल होने से भी डर रहे हैं। जिंदगी से सबसे कठिन पल में लोग एकदम से अकेले हो रहे हैं। यह दर्द अपनों के चले जाने से भी बड़ा हो रहा है। कोलाकाता में भी एक पत्रकार को इसी दर्द से गुजरना पड़ा।

कोलकाता में रहने वाले वरिष्ठ पत्रकार गौतम भट्टाचार्य की मां का देहांत बीते 1 अप्रैल को हुआ. हालांकि, मौत का कारण कोरोना वायरस नहीं था. लेकिन कोरोना की वजह से लागू लॉकडाउन गौतम भट्टाचार्य के लिये दोहरी चुनौती बन गया. लॉकडाउन में सब कुछ बंद है. लिहाजा, शव ले जाने के लिये वाहन मिलना परेशानी का सबब बन गया.

गौतम भट्टाचार्य बताते हैं ‘पहले ये तो मुश्किल थी कि अंतिम संस्कार स्थल जाने के लिये शववाहन कहां से आये? इसके लिये मुझे अपनी जान-पहचान के लोगों से संपर्क करना पड़ा और घंटों की कोशिश के बाद वाहन का इंतजाम हो पाया. लॉकडाउन की वजह से कम ही रिश्तेदारों और दोस्तों को बुलाया गया.’

गौतम भट्टाचार्य बताते हैं कि मां की चिता को अग्नि देते वक्त हाथों में ग्लव्स और मास्क पहने हुए था। चारों तरफ अपनों की नहीं बल्कि अजनबियों की भीड़ थी. यह बहुत दुखद पल था.

अस्थि विसर्जन के दौरान नहीं मिला कोई पुजारी

मुश्किलें सिर्फ शव के लिये वाहन जुटाना ही नहीं था, बल्कि जब अस्थि विसर्जन की बारी आयी तब भी गौतम भट्टाचार्य को लॉकडाउन से उपजे हालात का सामना करना पड़ा. वो अपनी मां की अस्थियां गंगा में विसर्जन के लिये ले गये, लेकिन वहां पूजा कराने के लिये कोई पुजारी तक नहीं था, क्योंकि वो सब अपने-अपने घर चले गये थे.

गौतम भट्टाचार्य ने बताया कि वो अपना मुंडन कराना चाहते थे, ये उनकी मां की इच्छा थी, मगर ऐसा भी नहीं हो सका क्योंकि वहां काफी तलाशने के बाद भी कोई मुंडन करने वाला नहीं मिला. श्राद्ध भी घर पर ही बहुत कम लोगों की मौजूदगी में किया गया.