रायपुर। फर्जी बिल और फर्जी फर्मों के जरिए जीएसटी और टैक्स चोरी के मामले राजधानी रायपुर में काफी पहले उजागर हो चुके हैं। लेकिन विभाग की मिली भगत कहिए या फिर कार्रवाई ना करने का दवाब, यह गोरखधंधा फलता फूलता ही रहा। नतीजा यह हुआ कि ज्वैलर्स से लेकर कंस्ट्रक्शन और ट्रांसपोर्टेशन से लेकर अनाज, बिल्डिंग मैटेरियल, कोई ऐसा क्षेत्र नहीं बचा जहां फर्जी बिल के जरिए जीएसटी चोरी करने का काम नहीं किया जाने लगा। दो तीन दिन पहले 400 करोड़ रुपये के फर्जी बिल मामले में गिरफ्तार दधिची ग्रुप के मालिक से मिली जानकारी के आधार पर राजस्व विभाग ने जब कार्रवाई शुरू की तो जो नेटवर्क की जानकारी मिली, उसे देख सुन कर विभाग के होश भी उड़े हैं।
दो दिन पहले राजधानी के 5 सराफा कारोबारियों के यहां हुए आयकर सर्वे में भारी तादात में फर्जी बिल मिले है। सेंट्रल जीएसटी को भी इन फर्जी बिल के जरिए करोड़ों की टैक्स चोरी के बारे में अहम जानकारी हाथ लगी है। लिहाजा विभाग 100 से ज्यादा ऐसे कारोबारियों को अपने रडार पर ले लिया है। अब उन्हें नोटिस देकर जवाब तलब करने का काम भी शुरू कर दिया गया है।
5000 से ज्यादा फर्जी कंपनी, अकेले रायपुर में
अकेले राजधानी रायपुर में ही 5 हजार से ज्यादा फर्जी कंपनियों के होने की बात सामने आ रही है, जो फर्जी बिल के जरिए जीएसटी चोरी के धंधे में कारोबारियों की मदद कर रह रही हैं। हैरानी की बात यह है कि इस रैकेट का खुलासा आज से करीब तीन साल पहले ही हो गया था । भैंसथान इलाके में हुए आयकर सर्वे में एक फर्म का भंडा फूटा था जिसका काम ही फर्जी बिल बना कर कारोबारियों को बेचना था। यह फर्म केवल छत्तीसगढ़ में ही नहीं बल्कि पश्चिम बंगाल, दिल्ली, उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश जैसे राज्यों के कारोबारियों को भी फर्जी बिल सप्लाई किया करता था। लेकिन हैरानी की बात ही कही जाएगी कि इस मजबूत जानकारी के सामने आने के बाद भी विभाग ने कोई कड़ी कार्रवाई नहीं की। यह नेटवर्क और धंधा फलता फूलता ही रहा।
कैसे होती है जीएसटी की चोरी
दरअसल हर कारोबार में कारोबारी टैक्स की चैरी करने के लिए फर्जी बिल का सहारा ले रहे हैं। कभी उनकी मजबूरी होती है तो कभी ज्यादा पैसे कमाने की चाह। इसमें सराफा सेक्टर सबसे ज्यादा बदनाम है। अमूमन सबको पता है कि सराफा से मोटा माल खरीने वाला अपनी पहचान छुपाना चाहता है। जाहिर है कि वो बिल भी नहीं लेना चाहेगा। सराफा कारोबारी को अपना कारोबार करना है। तो वह उस मोटी रकम का फर्जी बिल तैयार कराता है। इसकी वजह भी है। उसने अपने यहां माल मंगवाया है तो इसके कागजात भी है उसके पास। अब वो माल नहीं है तो उसे बेचने के बिल भी दिखाने होंगे। चुंकि ग्राहक ने बिल लिया नहीं है इसलिए बिल कहीं और से जुगाड़ करना होगा। इस काम के लिए फर्जी फर्म आगे आते हैं। वो कमिशन लेकर फर्जी बिल थमा देते हैं। इस तरह काला कारोबार सफेद हो जाता है। कमिशन की राशि जीएसटी दर पर तय होती है। यानी जिस गुड्स पर जितना जीएसटी, उतना का कमिशन। कभी कभी फर्मी एक दो परसेंट ज्यादा का भी कमिशन ले लेती हैं।
इसी तरह का गोरखधंधा अमूमन हर सेक्टर में चल रहा है। ट्रांसपोर्टेशन से लेकर कंस्ट्रक्शन, अनाज, बिल्डिंग मैटेरियल हर क्षेत्र में। फर्जी बिल के जरिए सैकड़ों करोड़ रुपये का चूना सरकार के खजाने को लगाया जा रहा है। लेकिन हैरानी की बात है कि इतना बड़ा विभाग और इतने सारे अधिकारी कर्मचारी होने पर भी यह नेटवर्क फलता फूलता कैसे रहा। इसमें निश्चित रुप से विभाग की शह या मजबूरी शामिल रही होगी।
हमेशा से चलता आ रहा, विभाग के जाने बिना कुछ नहीं
राजधानी रायपुर एक कारोबारी बताते हैं कि टैक्स चोरी का धंधा सालों से चलता आ रहा है। हर समय में टैक्स चोरी होती रही है। सब करते रहे हैं। लेकिन ऐसा नहीं कि विभाग को पता नहीं होता। राजस्व विभाग हो या आयकर या फिर अब सेंट्रल जीएसटी। अधिकारियों को सब पता होता है। केंद्र से सख्ती होने पर अब थोड़ी बहुत कार्रवाई शुरू हुई है। आधे से ज्यादा काम तो फर्जी बिल के जरिए ही होते हैं।