राज्यों में कोरोना से लड़ने के लिए नहीं हैं जरुरी मेडिकल सुविधाएं… 410 आईएएस अधिकारियों की रिपोर्ट से हुआ खुलासा

देश में कोरोना के बढ़ते मामलों से निपटने के लिए केंद्र और राज्यों की सरकारें हर संभव प्रयास कर रही हैं। इस बीच देश के 410 युवा आईएएस अधिकारियों ने एक फीडबैक सर्वे रिर्पोट तैयार की है। इसमें केंद्र और राज्यों की कोरोना जैसी महामारी से निपटने के लिए तैयारी व मौजूदा संसाधनों का आकलन है।पूर्वोत्तर क्षेत्र विकास मंत्रालय के राज्यमंत्री, प्रधानमंत्री कार्यालय, परमाणु ऊर्जा विभाग तथा अंतरिक्ष विभाग के राज्यमंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह ने यह सर्वे रिपोर्ट जारी की है। इसमें डीएआरपीजी ने एक पोर्टल के जरिए देश के विभिन्न हिस्सों में तैनात 410 जिला कलेक्टरों और दूसरे आईएएस अधिकारियों (बैच 2014-2018) और आमजन की तरफ से कही गई बातें साझा की हैं।

एक ही कॉमन समस्या: मेडिकल सुविधा और संसाधनों का अभाव

सर्वे में देखने को मिला है कि सभी राज्यों में मेडिकल सुविधा और संसाधनों का अभाव है। साथ ही, प्रशिक्षित स्वास्थ्य अधिकारियों और पैरामेडिकल स्टाफ की भी कमी देखने को मिली है। पर्याप्त संख्या में वेंटिलेटर का उपलब्ध होने के सवाल पर 71 फीसदी से ज्यादा लोगों ने अपनी असहमति दिखाई है।

इसके अलावा पीपीई (पर्सनल प्रोटेक्टिव इक्यूपमेंट) को लेकर 47 फीसदी से ज्यादा और आईसीयू बेड की सुविधा को लेकर 59 फीसदी लोगों ने इनकी कमी बताई है। आइसोलेशन बेड के मामले में केवल 28 फीसदी ने इसकी कमी बताई है। इनके अलावा विभिन्न राज्यों में कई दूसरी समस्याएं भी सामने आई हैं।

महाराष्ट्र: मुंबई-पुणे के बीच आवाजाही न रुक पाई, टेस्टिंग सेंटर कम

यहां पर आदिवासी इलाके जैसे पहलगढ़ में जरूरी मेडिकल सुविधाएं न के बराबर हैं।साथ ही इस क्षेत्र में मूलभूत सुविधाएं भी नहीं है। आईएएस अधिकारियों ने कहा है कि लॉकडाउन पीरियड के दौरान यदि पुणे और मुंबई के बीच आवाजाही को पूर्ण तरीके से रोक दिया जाता, तो कोरोना संक्रमण इतना ज्यादा नहीं फैलता।

इंटरस्टेट बॉर्डर के नेवीगेशन चेक प्वाइंट पर देरी की वजह से जरूरी सामान की सप्लाई बाधित हो रही है। पूरे राज्य में जो सबसे बड़ी कमी देखी गई, वह टेस्टिंग सेंटर को लेकर रही है।

गुजरात: भावनगर में दो हफ्ते में लाख लोगों का प्रवेश हुआ

इस राज्य में कोरोना के चलते बहुत से लोग शहरों से निकलकर गांवों की ओर जा रहे हैं। इस वजह से संक्रमण का खतरा बढ़ गया है। ऐसे में लॉकडाउन और सोशल डिस्टेंसिंग जैसे नियमों का पालन कराना भी मुश्किल हो जाता है।

बनासकांठा जैसे इलाके में बाहर के लोगों को आने से रोकना एक बड़ी चुनौती बन गई है। वहीं भावनगर में पिछले दो सप्ताह के दौरान दो लाख माइग्रेंट लोगों का प्रवेश बताया जा रहा है। डांग जिले में कोरोना को लेकर लोगों में जागरूकता और लापरवाही देखने को मिली।

केंद्रशासित प्रदेशों में भी नहीं हैं पर्याप्त सुविधाएं

दक्षिण दिल्ली में कोरोना की जांच को लेकर एक बड़ी बात सामने आई है। यहां रिपोर्ट बताती है कि डॉक्टरों को कोरोना का ज्यादा से ज्यादा टेस्ट करना चाहिए। दमन और दीव में संसाधनों की भारी कमी है।

जम्मू-कश्मीर में दवा सप्लाई की कमी देखने को मिली है। लक्ष्यद्वीप की भौगोलिक बनावट के चलते जरूरी सामान और मेडिकल उपकरणों की सप्लाई बाधित हो रही है।

आंध्रप्रदेश, छत्तीसगढ़, बिहार और झारखंड में है ऐसी स्थिति… 

आंध्रप्रदेश के कृष्णा जिले में तेलंगाना बॉर्डर से आने वाले विदेशी लोगों की पहचान करना मुश्किल हो गया है। इन्हें आइसोलेट करना भी आसान नहीं होता। झारखंड के दुमका में बड़ी विचित्र स्थिति देखने को मिली है। यहां पर वेंटिलेटर हैं, लेकिन एनेस्थेटिक न होने के कारण उन्हें नहीं चलाया जा सकता।

बिहार के समस्तीपुर में इंफ्रारेड थर्मामीटर की बड़ी कमी सामने आई है। नवादा में मेडिकल सुविधाएं होना तो दूर की बात है, वहां हाथ साफ करने के लिए सैनिटाइजर ही नहीं हैं। बिहार की राजधानी पटना में डॉक्टरों ने शिकायत की है कि उनके पास सर्जिकल दस्ताने, ऑक्सीजन सिलेंडर, ऑक्सीजन रेग्यूलेटर और डिस्नइफेक्टटेंट्स की कमी है।

छत्तीसगढ़ में लोकल स्तर पर मेडिकल सेवाओं का ग्राफ बहुत नीचे है। वहां पर सड़कों का इतना बुरा हाल है कि एंबुलेंस और जरूरी सामानों की सप्लाई करने वाले ट्रक समय पर नहीं पहुंच पा रहे हैं।

पूर्वोत्तर: मेडिकल स्टाफ और एंबुलेंस की कमी

अरुणाचल प्रदेश में दिबांग घाटी जिले में लोगों को अनेक परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। इस जिले का निकटवर्ती कोरोना टेस्टिंग सेंटर डिब्रूगढ़ में स्थित है। सर्वे रिपोर्ट में कहा गया है कि मेडिकल स्टाफ और एंबुलेंस की कमी तो सारे पूर्वोत्तर में देखने को मिल रही है।

असम, जिसकी पूर्वोत्तर में सबसे ज्यादा जनसंख्या है, वहां की कछार घाटी में लॉकडाउन का अच्छी तरह पालन नहीं हो रहा है। कछार घाटी में मिजोरम से आने वाले लोगों की आवाजाही जारी है। उदल गुड़ी और सोनितपुर में प्रशिक्षित स्टाफ और दवाओं की भारी कमी देखी जा रही है।