ये तीन खोज कोरोना की लड़ाई में देश को दिलाएगी जीत.. वैज्ञानिकों की कोशिश से बंध रही बड़ी उम्मीद

आस्था अपनी जगह है, लेकिन जान अभी विज्ञान ही बचाने में जुटा है। जी हां, कोरोना महामारी के खिलाफ शुरू हुई इस लड़ाई में ज्ञान और विज्ञान कमर कस कर खड़ा है। वैज्ञानिकों की कोशिश लोगों को राहत और उम्मीद की नई किरण दिखा रही है। आइए, आपको बताते हैं देश में हुए तीन ऐसे खोज से, जो लोगों को उम्मीद बंधाते हैं कि कोरोना की लड़ाई में देश जरुर जीतेगा।

स्वाब तैयार करने वाले डॉ. मिलिंद कुलकर्णी ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में इसकी जानकारी दी। 


यह तस्वीर वैज्ञानिक डॉ. मिलिंद कुलकर्णी की है। ये सेंटर फॉर मटेरियल्स फॉर इलेक्ट्रॉनिक्स टेक्नोलॉजी (सीमेट) में काम करते हैं। सीमेट ने बहुत कम लागत वाला स्वदेशी पॉलिमर स्वाब तैयार करने में कामयाबी हासिल की है। केंद्र के डॉ. मिलिंद कुलकर्णी के मुताबिक, स्वाब का उपयोग कोरोनावायरस परीक्षण के लिए एकत्रित किए जाने वाले सैंपल को रखने में काम आता है। अभी इसे इटली, अमेरिका और जर्मनी से मंगाया जाता है। आने वाले दिनों में दुनिया में कोरोना के मामले बढ़ेंगे, इसलिए आने वाले दिनों में स्वाब की कमी हो सकती है। मुसीबत की इस घड़ी में यह स्वदेशी स्वाब देश के काफी काम आ सकता है। डॉ. मिलिंद के अनुसार, अभी स्वदेशी स्वाब का प्रोटोटाइप तैयार हुआ है। अब इसके क्लिनिकल ट्रायल की तैयारी की जा रही है। इसकी जिम्मेदारी यूरोलॉजिस्ट डॉ. केएन श्रीधर को दी गई है। डॉ. मिलिंद के अनुसार, आने वाले दिनों में लाखों स्वाब की जरूरत पड़ेगी। उनकी मशीन एक मिनट में 1 हजार से 2 हजार स्वाब तैयार करने में सक्षम है।   

गुजरात में 10 दिनों के अंदर यह वेंटिलेटर तैयार हुआ है। इसकी कीमत 1 लाख रुपये है।

यह तस्वीर भारत में तैयार वेंटिलेटर मशीन की है। कोरोना की लड़ाई में वेंटिलेटर की भूमिका सबसे अहम होगी। देश में इसकी भारी कमी है, और यही सबसे बड़ा डर भी बन गया है। लेकिन इस डर को दूर कर दिया है गुजरात के राजकोट की ज्योति सीएनसी कंपनी ने। पूरी तरह स्वदेशी वेंटिलेटर केवल एक लाख रुपये में तैयार हुआ है, जबकि विदेशों सेआने वाला वेंटिलेटर 6 से 7 लाख रुपये का होता है। इस जीवन रक्षक उपकरण को को नाम दिया गया है धामन-1।

मुख्यमंत्री विजय रुपाणी ने ने बताया कि अगले 10 दिनों में कंपनी गुजरात सरकार को 1000 एयर-1 वेंटिलेटर देगी। कंपनी के पराक्रम सिंह जडेजा ने बताया, ”इसे डॉ. राजेंद्र सिंह परमार की टीम ने महज 10 दिनों में तैयार किया है। डॉ. परमार ने 5 साल तक अमेरिका में काम किया है। इस वेंटिलेटर को बनाने में 150 विशेषज्ञ इंजीनियरों की टीम जुटी थी। इसका परीक्षण अहमदाबाद के असरवा सिविल अस्पताल में भर्ती कोरोना मरीज पर किया गया। वेंटिलेटर पांच घंटे से अधिक समय तक रोगी पर अच्छा काम कर रहा है।” 

डीआरडीओ के वैज्ञानिकों ने पर्सनल सैनिटाइजेशन चैंबर तैयार किया है। इसे हॉस्पिटल के प्रयोग में लाया जा सकता है। 

कोरोनावायरस की सबसे बड़ी ताकत तेजी से संक्रमण फैलाने की है। अगर संक्रमण को रोक दिया तो उसकी ताकत भी खत्म हो जाएगी। डिफेंस रिसर्च एंड डेवलपमेंट ऑर्गनाइजेसन (डीआरडीओ) ने इसी दिशा में एक फुल बॉडी डिसइन्फेक्शन चैंबर बनाया है। इसे सैनिटाइजेशन चैंबर भी कहा जा रहा है। इस चैंबर में व्यक्ति को एक बार में पूरी तरह से सैनिटाइज किया जाएगा। इसमें एक पैडल के माध्यम से खुद को सैनिटाइज किया जाता है। चैंबर में पंप के माध्यम से हाइपो सोडियम क्लोराइड की तेज फुहार डाली जाती है। यह स्प्रे 25 सेकंड तक चलता है। इस चैंबर में व्यक्ति को अपनी आंखे बंद रखनी होती हैं। इस चैंबर में 700 लीटर का टैंक है। एक बार में करीब 650 लोगों को सैनिटाइज किया जा सकता है।