महिलाओं के लिए शादी की कानूनी उम्र 18 साल तय किस आधार पर की गई? अगर महिला और पुरुष कानून की नजर में एक है तो महिला के लिए 18 और पुरुषों के लिए शादी की उम्र 21 तय क्यों की गई? क्या यह समानता के आधार का उल्लंघन नहीं? एक रोचक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए जोधपुर हाईकोर्ट ने सरकार से इस पर जवाब मांग लिया है।
दरअसल महिलाओं की शादी की काननी उम्र को लेकर एक जनहितत याचिका राजस्थान हाईकोर्ट में लगी हुई है। यह याचिका अब्दुल मन्नान की ओर से लगाई गई है, जिस पर चीफ जस्टिस इंद्रजीत मोहंती और जस्टिस डॉ. पुष्पेंद्र सिंह भाटी की डिविजन बेंच सुनवाई कर रही है। राजस्थान उच्च न्यायालय ने बुधवार (5 फरवरी) को केंद्र और राज्य सरकार से जवाब मांगा है।
याचिकाकर्ता ने कहा, “महिलाओं और पुरुषों की शादी के लिए अलग-अलग उम्र निर्धारण न सिर्फ लैंगिक समानता और न्याय के खिलाफ है जो कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 और 15 में दिए गए हैं, बल्कि यह महिलाओं के सम्मान के विरुद्ध भी है जो कि अनुच्छेद 21 में निहित है।”
याचिका में कहा गया है कि दुनिया के 125 से ज्यादा देशों में पुरुषों और महिलाओं के लिए विवाह की उम्र एक समान है। राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग ने बाल विवाह पर राष्ट्रीय सम्मेलन का अनुसरण करते हुए सिफारिश की थी कि भारत इसका पालन करे और न्यूनतम आयु सीमा को एकसमान करे।
इसके साथ ही याचिका में कहा गया, “स्कूली पढ़ाई खत्म होने के बाद 18 की उम्र में महिलाओं के पास अपनी पढ़ाई को आगे जारी रखने, या पेशा चुनने की आजादी का मौलिक अधिकार है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक, 20 साल की उम्र से पहले गर्भवती हुई महिलाओं में जन्म के वक्त शिशु के कम वजन, तय तिथि से करीब तीन हफ्ते पहले जन्म (प्रीमैच्योर डिलिवरी) का खतरा सबसे ज्यादा रहता है।”