टिकटॉक पर फैला ‘अफवाह वायरस’… मुस्लिमों को लॉकडाउन नियम तोड़ने के लिए उकसाने वाले विडियो की आई बाढ़… विदेशी कनेक्शन का भी संदेह

भारत एक तरफ तो कोरोना महामारी के खिलाफ जंग लड़ रहा है। दूसरी तरफ उसे अफवाह रुपी वायरस से भी जूझना पड़ रहा है। ये अफवाह विशेष तौर पर मुस्लिम समुदाय के लोगों को टार्गेट कर तैयार किए जा रहे हैं। दिल्ली की एक संस्था ने पिछले कुछ दिनों में टिक टॉक प्लेटफार्म पर वायरल कुछ क्लिप का अध्ययन कर यह निष्कर्ष निकाला है। इन टिकटॉक विडियो के जरिए भारतीय मुसलमानों को लॉकडाउन के निर्देश और नियमों को तोड़ने के लिए उकसाया जा रहा है।

इन विडियो के जरिए भारतीय मुसलमानों को बरगलाया जा रहा है। झूठी रिसर्च और रिपोर्ट का हवाला देकर बताया जा रहा है कि कोरोना वायरस से कोई मुसलमान नहीं मर रहा है। गले लगने और हाथ मिलाने से बीमारी फैल नहीं बल्कि खत्म हो रही है। लोगों को मास्क नहीं पहनने के लिए भी उकसाया जा रहा है। खास बात यह कि वायरल होने के बाद ये विडियो ओरिजनल टिकटॉक हैंडल से डिलिट कर दिए जा रहे हैं, ताकि इसे किसने फैलाया यह पता नहीं चल सके।

दिल्ली स्थित डिजिटल लैब वॉइजर इंफोसेक ने इस हफ्ते सर्कुलेट की गई 30,000 क्लिप्स की जांच की. इससे एक निश्चित पैटर्न सामने आया. ऐसी क्लिप्स के पीछे भारतीय मुस्लिम समुदाय को टारगेट कर भ्रम फैलाने वाली सूचनाएं देने का अभियान नजर आता है.

वीडियोज में मुस्लिमों के किरदार में युवा लड़कों, किशोरों और वयस्कों को दिखाया गया है, जो मुस्लिमों को सावधानियां बरतने से हतोत्साहित करते नजर आते हैं. ये टिकटॉक बातचीत धार्मिक अतिरंजनाओं से लैस है. जैसे – कोरोनावायरस अल्लाह की NRC है’। ऐसे ही एक वीडियो में, एक युवा लड़का महामारी को ‘अल्लाह की NRC’ बताता है। वो दलील देता है,’ये कोरोना वायरस कुछ नहीं है. ये अल्लाह की NRC है. ये अल्लाह की ख्वाहिश है कि किसे रहना है और किसे बुलावा आ जाना है.’

13 सेकेंड के वीडियो में कुछ और लड़के अपने मास्क को हवा में उड़ाते दिखते हैं. साथ ही बैकग्राउंड में गाना चलता रहता है- ‘अल्लाह से डर’! ‘COVID-19 से मुस्लिम रहेंगे बे-असर’ 17 सेकेंड के एक और वीडियो क्लिप में हिंदी टेक्स्ट में लिखा हुआ है कि कोरोना वायरस मुस्लिमों पर वार नहीं करेगा. एक लाइन में पवित्र कुरान का हवाला दिया गया है. साथ ही दावा किया गया है कि हाथ मिलाने और गले मिलने से बीमारियां ठीक होती हैं.

वोइजर इंफोसेक ने अपनी डिजिटल जांच रिपोर्ट केंद्रीय गृह मंत्रालय को सौंपी है. लैब ने हाई-इम्पैक्ट वीडियोज की रेंज की पहचान की है, जिनमें लॉकडाउन के दिशा-निर्देशों के खिलाफ मुस्लिमों की धार्मिक भावनाओं को भड़काने की कोशिश की गई है.

डिजिटल ट्रेल को छुपाना

कंटेट को मूल रूप से बनाने वाले अनेक अकाउंट नियमित रूप से डिलीट किए जाते रहते हैं. वोइजर इंफोसेक की जांच रिपोर्ट के मुताबिक, वीडियो के वायरल होने के बाद ऐसा किया जाता है. ये हथकंडा अपनाने से कंटेट बनाने वालों को अपने डिजिटल फुटप्रिंट्स छुपाने में मदद मिलती है.

भारतीय मुस्लिमों के लिए विदेशी कंटेंट

जांच रिपोर्ट कहती है, ‘कुछ वीडियो विदेशी मूल के भी हैं लेकिन उन्हें हिंदी टेक्स्ट और उर्दू वॉयसओवर के साथ एडिट किया गया है जिससे कि वो भारतीय ऑडियंस को समझ आ सकें.’ जांच रिपोर्ट इस दुष्प्रचार अभियान में विदेशी हाथ की संभावित भूमिका का पता लगाने के लिए गहराई से पड़ताल की सिफारिश करती है.

वोइजर इंफोसेक के निदेशक जितेन जैन कहते हैं, ‘हमने बहुत अहम पैटर्न को पकड़ा है जिसमें दिखता है कि दुष्प्रचार फैलाने के लिए टिकटॉक का इस्तेमाल प्रमुख माध्यम के तौर पर किया जाता रहा है. इसमें झूठी और संदिग्ध रिसर्च के हवाले से कहा जाता है कि कोरोना वायरस मुस्लिमों पर असर नहीं करेगा. इनमें ये भी कहा जाता है कि चीन और इटली में एक भी मुस्लिम की मौत नहीं हुई.’

जैन ने कहा, ‘हमने कुछ निश्चित हैंडल्स और इन वीडियो के पैटर्न की पहचान की है. एक बार वीडियो वायरल हो जाता है तो उसके ओरिजनल हैंडल को डिलीट कर दिया जाता है. ये इसलिए किया जाता है जिससे कि ये पता लगाना मुश्किल हो कि कंटेट को मूल रूप से बनाने वाला कौन है. इस जांच का उद्देश्य मुस्लिम भाइयों को ऐसे पैटर्न्स के बारे में जानकारी देना है.