नई दिल्ली।फांसी की सजा पा चुके निर्भया के दरिंदों ने कानूनी प्रावधानों के साथ जिस तरह खेलना शुरू किया, उसे देख कर सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court ) को भी कदम उठाने पर मजबूर हो जाना पड़ा। फांसी की सजा पा चुके अपराधी अब इस तरह के हथकंडे ना अपना सके, इसके लिए नई गाइडलाइन तैयार करने पर सुप्रीम कोर्ट राजी हो गया है. फांसी की सजा में देरी न हो इसके लिए नई गइडलाइन्स (New Guideline) बन सकती है।
निर्भया गैंग रेप केस के दोषियों की ओर से लगातार फांसी की सजा टालने के लिए कोर्ट की रुख करने के बाद शुक्रवार को इस मामले में सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) इस बात पर सहमत हो गया है कि इस मामले में नए दिशा निर्देश तय किए जाएं। फांसी की सजा के मामलों में पीड़ित और समाज के हित को ध्यान में रखते हुए दिशा निर्देश बनाये जाने की केंद्र सरकार की मांग पर सुप्रीम कोर्ट सहमत हो गया है।
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र की याचिका पर नोटिस जारी किया है। सरकार का कहना है कि 2014 में शत्रुघ्न चौहान केस में सुप्रीम कोर्ट के दिए दिशा निर्देश दोषियों के लिए फांसी टलवाने का हथकंडा बन गया है। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार की याचिका पर शत्रुघन चौहान को नोटिस जारी करते हुए 4 सप्ताह में जवाब मांगा है। केंद्र सरकार ने अपनी याचिका में कहा है कि
– रिव्यू पेटिशन खारिज होने के बाद दोषी के क्यूरेटिव दाखिल करने की सीमा तय हो
– डेथ वारंट जारी होने के 7 दिन में ही दया याचिका दाखिल करने की इजाजत हो
– दया याचिका खारिज होने के 14 दिन में अनिवार्य फांसी हो। मामले के बाकी दोषियों की लंबित याचिका से फर्क न पड़े
– समाज और पीड़ित के अधिकारों को भी ध्यान में रखकर दिशनिर्देश बनाए जाने चाहिए
– अगर जरूरत पड़ी तो याचिकाकर्ता के वकील की फीस केंद्र सरकार वहन कर सकती है।
केंद्र सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि संविधान के आर्टिकल 21 का हवाला दोषियों की ओर से दिया जाता है। लेकिन पीड़ित और उसके परिवार वालों के भी अधिकार हैं। उन्हें भी समय से न्याय मिलना जरूरी है। साथ ही उन्होंने कहा कि एक से अधिक दोषियों के मामले में कानूनी प्रावधानों का इस्तेमाल कर दोषी बार-बार फांसी की सजा टालने का प्रयास करते हैं। आपकी गाइडलाइंस के कारण एक से ज्यादा दोषियों के मामले में सभी को एक साथ फांसी दिए जाने की बात कही थी। इससे समस्या ये होती है कि दोषियों की सजा में विलंब होता है। इसलिए इसके लिए एक टाइम लाइन भी तय होनी चाहिए। आगे उन्होंने कहा कि मौत कि सजा के मामले में पुनर्विचार और क्यूरेटिव पिटीशन के निपटारे समेत पीड़ित और समाज के हित में दिशानिर्देश जारी होना जरूरी है।
इससे पहले राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने भी दया याचिका के प्रावधान पर पुनर्विचार करने का सुझाव दिया था। उन्होंने कहा था कि इस तरह के अपराध में दोषियों को मांफी नहीं दी जा सकती। ऐसे में दया याचिका का कोई औचित्य नहीं है।