बनारस का सोरहिया मेला बहुत खास है, इसमें महिलाएं सोलह दिन तक संतान, सुख और समृद्धि के लिए मां लक्ष्मी की पूजा करती है। यह मेला भादो की शुक्ल पक्ष की अष्टमी से शुरू होकर आश्विन मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तक चलता है। तो आइए आपको इस अनोखे मेले के बारे में खास जानकारी देते हैं। जाने सोरहिया मेला के बारे में 16 दिन चलने के कारण इस मेले का नाम सोरहिया मेला है। सोरहिया मेले में महालक्ष्मी की आराधना की जाती है। लक्ष्मी कुंड में मौजूद महालक्ष्मी का दर्शन इन दिनों फलदायक होता है। मेले के पहले दिन लोग महालक्ष्मी की प्रतिमा खरीद कर घर ले जाते हैं। उस प्रतिमा की 16 दिनों तक कमल के फूल से पूजा होती है। कहा जाता है कि सोरहिया में मां लक्ष्मी की पूजा से घर में सुख, शांति, आरोग्य, ऐश्वर्य और लक्ष्मी निवास करती है। मेला शुरू होते ही लक्ष्मीकुंड में आराधना शुरू हो जाती है। लक्ष्मी का मंदिर परिसर श्रीसूक्त, स्वर्णाकर्षण के मंत्रों से गूंज उठता है। भक्तगण मां लक्ष्मी की खास प्रतिमा और कपड़े खरीदते हैं।
सोरहिया मेले से जुड़ी कथा इस मेले के बारे में एक कथा प्रचलित है कि प्राचीन काल में महाराजा जिउत की कोई संतान नहीं थी । इससे महाराज बहुत दुखी हुए और उन्होंने मां लक्ष्मी का ध्यान किया। महाराजा की श्रद्धा देखकर मां लक्ष्मी प्रसन्न हुई और उन्होंने सपने में दर्शन देकर सोलह दिनों का कठिन व्रत करने को कहा। महाराजा ने लक्ष्मी जी आज्ञा के अनुसार व्रत किया जिससे महाराजा को संतान की प्राप्ति हुई। संतान के साथ उन्हें जीवन में समृद्धि और ऐश्वर्य भी मिला। उसी समय से इस परंपरा का नाम सोरहिया पड़ा और आज भी भक्त पूरी श्रद्धा और विश्वास के साथ इस मेले में भाग लेते हैं। इस बार का मेला है खास इस वर्ष लगने वाला सोरहिया मेला बहुत खास है। पिछले सालों की तरह यह मेला 16 दिन न चलकर 15 दिन चलेगा। मेले की अवधि 15 दिन होने का कारण एक तिथि की हानि। इसलिए इस साल 16 दिनों तक नहीं बल्कि 15 दिनों तक ही होगी देवी की आराधना। मंदिर की सजावट होती है शानदार सोरहिया मेले के दौरान बनारस के लक्सा स्थित महालक्ष्मी मंदिर की सजावट देखते ही बनती है। इस दौरान महालक्ष्मी मंदिर में सरस्वती, लक्ष्मी और काली को मुखौटे से सजाया जाता है। भोर में ही मां लक्ष्मी का पंचामृत से स्ननान कराया जाता है उसके बाद लक्ष्मी जी की विधिवत आरती की जाती है। आरती के बाद भक्तों को दर्शन के लिए गर्भगृह खोल दिया जाता है। पूजा होती है घर में सोलह दिनों के मेले के दौरान भक्त महालक्ष्मी मंदिर में आकर पूजा करते हैं। इसके मुखौटा खरीद कर उसे डलिया में रखते हैं और दिन में पूजा का संकल्प कर घर वापस आकर पूजा करते हैं।
जिउतपुत्रिका के दिन होता है मेला खत्म मेले के पहले दिन सोलह गांठ के धागा की पूजा कर बांह में बांधने के बाद सोलह दिन व्रत स्त्रियां शुरू करती है। डलिया में सजी मां लक्ष्मी का मुखौटा घर ले जाकर पूजते हैं। आखिरी दिन जीवित्पुत्रिका व्रत के लिए महिलाओं दर्शन के लिए आती है। व्रत रखने वाली स्त्रियां पहले ही दिन से मां लक्ष्मी की मूर्ति में धागा लपेट कर पूरे सोलह दिन पूजा करती है और अंतिम 16 वें दिन जिउतपुत्रिका के दिन व्रत का समापन करती है।