रायपुर. साइंस जल्दी ही एक नए करिश्मे के साथ सामने आ रहा है। अगर अमेरिकी वैज्ञानिकों की कोशिश कामयाब हुई तो जल्द ही पूरी तरह से काम करने वाला कृत्रिम मानव ह्रदय बनकर तैयार हो जाएगा। अमेरिकी वैज्ञानिकों को इसमें आंशिक सफलता मिल चुकी है. यह हृदय 3डी प्रिटिंग और फ्री फार्म रिवर्सिबल जैसी नई तकनीक के इस्तेमाल से संभव हो पाया है. वह इस कोशिश को पूरी तरह से सफल बनाने में जुटे हुए हैं.
हाल ही में अमेरिका के कार्नेगी मिलन विश्वविद्यालय की साइंस पत्रिका में एक रिसर्च प्रकाशित किया गया. इसमें वैज्ञानिकों ने दावा किया कि उन्होंने 3D बायोप्रिंटर और अपनी नई तकनीक के जरिए जीवित कोशिकाओं और प्रोटीन से मानव हृदय के विभिन्न हिस्सों को बनाने में सफलता पाई है. इस सफलता से उत्साहित वैज्ञानिकों का दावा है कि निकट भविष्य में पूरे मानव हृदय का निर्माण संभव हो सकेगा.
पेपर के सह लेखक एवं वर्ग ने बताया कि उन्होंने कोलेजन से 3D प्रिंट के जरिए हृदय का वाल्व बनाया जो काम करता है. कोलेजन वह तत्व है जो शरीर की लगभग हर अंग व कोशिकाओं के ढांचे में पाया जाता है. हृदय के साथ साथ मानव शरीर के सभी अंग कुछ विशेष कोशिकाओं से बने होते हैं. इन्हें प्रोटीन का एक बायोलॉजिक ढाचा बांध कर रखता है जिसे एक्सप्रो सेल्यूलर मैट्रिक्स कहा जाता है.
नई तकनीक से हुआ संभव
ईसीएम जैसा जटिल ढांचा 3D प्रिंटिंग के जरिए कोलेजन से बनाना संभव नहीं था. दरअसल कॉलेजन तरल होता है हृदय का एमआरआई कर उसे जीवित कोशिकाओं और कोलेजन से बनाने पर लिजलिजा अंग बनता है जो उपयोगी नहीं होता है. इस मुश्किल को देखते हुए इस प्रयोग में वैज्ञानिकों ने नई तकनीक फ्री फॉर्म रिवर्सिबल का इस्तेमाल किया है.
इसमें 3D प्रिंटिंग के समय कोलेजन को परत दर परत जमाया जाता है. हर परत के बीच जैल की सतह लगाई जाती है. जेैल सामान्य वातावरण के तापमान में पिघल कर ढांचे से निकल जाता है. इस तरह कॉलेजन बिना किसी नुकसान के ठोस हृदय का रूप ले लेता है.
कई अन्य चमत्कार के भी आसार
फ्री फार्म तकनीक से कई अन्य तत्वों को भी 3D प्रिंट में डाला जा सकता है. विश्वविद्यालय में बायोमेडिकल इंजीनियरिंग के प्रोफेसर एडिनबर्ग के मुताबिक फ्रेश तकनीक पर कुछ और अध्ययन होने हैं. यह तकनीक घावों को भरने से लेकर बेकार हो चुके अंग बनाने में काम आ सकती है